Wednesday 23 July 2014

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Saturday 12 July 2014

Our Bright Children

http://radiopune.blogspot.in/p/our-bright-children.htmlhttp://radiopune.blogspot.in/p/welcome.html

Our Cultural Heritage

डॉ. चतुर्भुज का जन्म बिहार में हुआ. इन्होंने अपना सारा जीवन हिंदी के माध्यम से नाट्य-लेखन,  उसके प्रस्तुतीकरण, निर्देशन, मंचन और अभिनय के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। नाट्य-कला को डॉ. चतुर्भुज ने रोज़ी-रोटी से जोड़कर बेरोजगारों को नयी दिशा देने का कार्य किया। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही उन्होंने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय,दरभंगा में एम.ए. स्तरपर 'नाट्यशास्त्र' को एक स्वतंत्र विषय के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल कराया।
आकाशवाणी में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे वहां प्रथम नाट्य-शिक्षक के तौर पर ढाई साल तक सेवारत रहे,साथ ही, सेवानिवृत्ति के १० वर्षों बाद उन्होंने मगध विश्वविद्यालय से पी. एच-डी. की डिग्री प्राप्त की, जिसका विषय था- 'भारत के प्रमुख नाटक और प्राचीन ग्रीक नाटक : एक अध्ययन'. 

डॉ.चतुर्भुज केलेखन की शुरुआत भारत-विभाजन केपूर्व होचुकी थी.उनकी कहानियों, लेखों और संस्मरणों का प्रकाशन उन पत्रिकाओं में होता रहा,जो आजप्रायः  बंद हो   चुकी हैं या विभाजन बाद पकिस्तान में चली गयी हैं. इनमें उल्लेखनीय हैं, विश्वामित्र (कोलकाता), लक्ष्मी (लाहौर), ज्योत्स्ना, हिन्दुस्तान, धर्मयुग, नवनीत, सत्यकथा आदि.
लेखक के अलावा डॉ चतुर्भुज ऐसे रंगकर्मी रहे जिन्होंने न सिर्फ़ पारसी शैली के नाटकों में अभिनय-निर्देशन करते हुए हिंदी युग के नाटकों को एक नयी दिशा और दृष्टि दी, बल्कि आज के नुक्कड़ नाटकों और टेरेस थिएटर तक का लम्बा सफ़र तय किया था. उन्होंने लगभग 300 से अधिक हिंदी नाटकों के प्रदर्शन में बतौर लेखक, निर्देशक और अभिनेता भाग लिया, जिसका प्रमाण है कि  फिल्म और रंगमंच की नामी हस्ती पृथ्वीराज कपूर इनके नाटक 'कलिंग विजय' को देखने के लिए अपने रंगमंडल के सदस्यों के साथ बख्तियारपुर (पटना) आये  थे।
डॉ चतुर्भुज के प्रकाशित रंगमंचीय नाटकों की संख्या 40  से अधिक है. इसके अतिरिक्त रेडियो-टेलीविज़न के लिए भी  इन्होने 100 सेऊपर नाटकों और रूपकों की रचना की.इनके चुने हुए पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक रंगमंचीय नाटकों का संग्रह 3 खण्डों में "चतुर्भुज रचनावली"के नाम से प्रकाशित है. नाट्य-लेखन के साथ ही डॉ. चतुर्भुज ने तीन ऐतिहासिक उपन्यासों की रचना की. 'समुद्र का पक्षी' इटैलियन यायावर मनुची के जीवन-चरित्र पर आधारित है, जिसने शिवाजी और औरंगज़ेब के युद्ध को अपनी आँखोंसे देखा था.'राजदर्शन'उपन्यास मुंगेरके नवाब मीरकासिम के चरित्र पर आधारित है और तीसरा उपन्यास 'तथागत'अपने नाम के अनुरूप   भगवान् बुद्ध के जीवन पर आधारित है.


अपने जीवन के अंतिम समय में डॉ. चतुर्भुज रंगकर्म के व्यावसायिक पक्ष को ध्यान में रखकर एक पुस्तक लिख रहे थे- 'नाट्य-शिल्प विज्ञान'. पुस्तक के सात अध्याय ही पूरे हुए थे कि 81 वर्ष की आयु में 11 अगस्त, 2009 को वे हमलोगों को एक अपूरणीय क्षति के साथ छोड़ गये.

- डॉ. किशोर सिन्हा, सहायक निदेशक (कार्यक्रम), आकाशवाणी, भागलपुर।   

If you want to add/share more information, please use the comment button given below the post or mail information to pbparivar@gmail.com

Akashwani and Doordarshan have a special significance as the grand old National Public Service Broadcasters and both of them have very rich and glorious history. Almost every renowned singer, celebrated dancer and distinguished and eminent writer have been associated with Akashwani, especially in the 1940s-50s and beyond. Many of them were associated with Doordarshan as well. Doordarshan has also contributed to the blossoming of many Film Directors, Artists, and Producers. PB Parivar calls upon each of its members to join hands in building up this data base and saluting our veterans and send such stories at pbparivar@gmail.com

Our Cultural Heritage

डॉ. चतुर्भुज का जन्म बिहार में हुआ. इन्होंने अपना सारा जीवन हिंदी के माध्यम से नाट्य-लेखन,  उसके प्रस्तुतीकरण, निर्देशन, मंचन और अभिनय के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। नाट्य-कला को डॉ. चतुर्भुज ने रोज़ी-रोटी से जोड़कर बेरोजगारों को नयी दिशा देने का कार्य किया। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही उन्होंने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय,दरभंगा में एम.ए. स्तरपर 'नाट्यशास्त्र' को एक स्वतंत्र विषय के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल कराया।
आकाशवाणी में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे वहां प्रथम नाट्य-शिक्षक के तौर पर ढाई साल तक सेवारत रहे,साथ ही, सेवानिवृत्ति के १० वर्षों बाद उन्होंने मगध विश्वविद्यालय से पी. एच-डी. की डिग्री प्राप्त की, जिसका विषय था- 'भारत के प्रमुख नाटक और प्राचीन ग्रीक नाटक : एक अध्ययन'. 

डॉ.चतुर्भुज केलेखन की शुरुआत भारत-विभाजन केपूर्व होचुकी थी.उनकी कहानियों, लेखों और संस्मरणों का प्रकाशन उन पत्रिकाओं में होता रहा,जो आजप्रायः  बंद हो   चुकी हैं या विभाजन बाद पकिस्तान में चली गयी हैं. इनमें उल्लेखनीय हैं, विश्वामित्र (कोलकाता), लक्ष्मी (लाहौर), ज्योत्स्ना, हिन्दुस्तान, धर्मयुग, नवनीत, सत्यकथा आदि.
लेखक के अलावा डॉ चतुर्भुज ऐसे रंगकर्मी रहे जिन्होंने न सिर्फ़ पारसी शैली के नाटकों में अभिनय-निर्देशन करते हुए हिंदी युग के नाटकों को एक नयी दिशा और दृष्टि दी, बल्कि आज के नुक्कड़ नाटकों और टेरेस थिएटर तक का लम्बा सफ़र तय किया था. उन्होंने लगभग 300 से अधिक हिंदी नाटकों के प्रदर्शन में बतौर लेखक, निर्देशक और अभिनेता भाग लिया, जिसका प्रमाण है कि  फिल्म और रंगमंच की नामी हस्ती पृथ्वीराज कपूर इनके नाटक 'कलिंग विजय' को देखने के लिए अपने रंगमंडल के सदस्यों के साथ बख्तियारपुर (पटना) आये  थे।
डॉ चतुर्भुज के प्रकाशित रंगमंचीय नाटकों की संख्या 40  से अधिक है. इसके अतिरिक्त रेडियो-टेलीविज़न के लिए भी  इन्होने 100 सेऊपर नाटकों और रूपकों की रचना की.इनके चुने हुए पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक रंगमंचीय नाटकों का संग्रह 3 खण्डों में "चतुर्भुज रचनावली"के नाम से प्रकाशित है. नाट्य-लेखन के साथ ही डॉ. चतुर्भुज ने तीन ऐतिहासिक उपन्यासों की रचना की. 'समुद्र का पक्षी' इटैलियन यायावर मनुची के जीवन-चरित्र पर आधारित है, जिसने शिवाजी और औरंगज़ेब के युद्ध को अपनी आँखोंसे देखा था.'राजदर्शन'उपन्यास मुंगेरके नवाब मीरकासिम के चरित्र पर आधारित है और तीसरा उपन्यास 'तथागत'अपने नाम के अनुरूप   भगवान् बुद्ध के जीवन पर आधारित है.


अपने जीवन के अंतिम समय में डॉ. चतुर्भुज रंगकर्म के व्यावसायिक पक्ष को ध्यान में रखकर एक पुस्तक लिख रहे थे- 'नाट्य-शिल्प विज्ञान'. पुस्तक के सात अध्याय ही पूरे हुए थे कि 81 वर्ष की आयु में 11 अगस्त, 2009 को वे हमलोगों को एक अपूरणीय क्षति के साथ छोड़ गये.

- डॉ. किशोर सिन्हा, सहायक निदेशक (कार्यक्रम), आकाशवाणी, भागलपुर।   

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Akashwani and Doordarshan have a special significance as the grand old National Public Service Broadcasters and both of them have very rich and glorious history. Almost every renowned singer, celebrated dancer and distinguished and eminent writer have been associated with Akashwani, especially in the 1940s-50s and beyond. Many of them were associated with Doordarshan as well. Doordarshan has also contributed to the blossoming of many Film Directors, Artists, and Producers. PB Parivar calls upon each of its members to join hands in building up this data base and saluting our veterans and send such stories at pbparivar@gmail.com