Monday 7 July 2014

Our Cultural Heritage

भारतीय जन मानस को जागरूक करने के लिए आकाशवाणी अपने स्थापना काल से ही प्रयत्न शील रही है, इसी कड़ी में उसके स्टाक कैरेक्टर की अवधारणा बनाई गयी, जो काफी सफल रही जिसमें लोहा सिंह ,जगराना ,बतासा बुआ,जुगानी भैया ,और गोबरधन यानि कैलाश नारायण सिंह थे , जिसमें गोबरधन अर्थात् कैलाश गौतम आकाशवाणी इलाहाबाद की पहचान बनें । ग्राम्य जीवन की सामाजिकता ,रीति रिवाज ,हँसी ठिठोली को विषय बना कर आकाशवाणी कापंचायत घर कार्यक्रम गोबरधन भैया की स्मृति का हिस्सा है । यह पंचायतअकेले के बस की बात नहीं थी ,इसमें और भी किरदार शामिल होते थे जो थेबंसी (केशव चन्द्र शर्मा )मतई (युक्ति भद्र दीक्षित )और गोबरधन यानि कैलाश गौतम के नाम से प्रसिध्द थे । गौतम जी ने लगभग 37 वर्ष तक की उत्कृष्ट सेवा आकाशवाणी को कम्पीयर के रूप में दी । और सदैव अपना आवास 135एमआईजी ,प्रीतम नगर ,इलाहाबाद ही रखा ।

कैलाश गौतम का जन्म वाराणसी जनपद के चंदौली तहसील के डिग्घी गाँव में पिता हरिहर प्रसाद सिंह के पुत्र के रूप में दिनांक 08 जनवरी 1944 को हुआ था,चंदौली अब स्वयं जनपद बन गया है,उन्होंने एम० ए०, बी ० एड ० की शिक्षा अर्जित की थी और सोचा था कि आगे चल कर शिक्षक बनेगें, परन्तु उन्हें क्या पता था कि जिस शहर में वे जा रहे है वहाँ उन्हें पहले से ही सब कुछ निर्धारित है और वे आकाशवाणी में भर्ती हो गये फिर पीछे मुड़ कर कभी देखा ही नहीं और देखने का समय भी नहीं मिला । उनका विवाह हुआ ,परिवार बना, बढ़ा ,उनकी धर्मपत्नी का नाम नीलम गौतम था,उनके एक पुत्र और दो पुत्रियां थी |पुत्र श्लेष गौतम पेशे से वकालत करते है,पुत्रियां सरोज त्यागी और संज्ञा थी ,अपने जीवन के अंतिम समय हिन्दुस्तानी अकादमी के अध्यक्ष थे |अकस्मात 09दिसम्बर 2006 को उनका हृदयाघात से निधन हो गया |उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ ने उन्हें राहुल सांस्कृत्यायन सम्मान दिया था, उत्तर प्रदेश राज्य प्रशासन लखनऊ ने उन्हें सम्मानित किया था |उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ नेउन्हें लोकभूषण सम्मान दिया था ,मरणोंपरान्त यश भारती सम्मान उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें दिया ,उनकी प्रकाशित पुस्तकें सीली माचिस की तीलियाँ ,बिना कान का आदमी, कविता लौट पड़ी ,चिंता नये जूते की ,राग रंग ,सर पर आग,तीन चौथाई आन्हर और जोड़ा ताल प्रमुख है । गौतम जी हमेशा बनारसी बोली में ही अपना साहित्य रचते रहे ,जो कभी भी किसी शब्द की मोहताज नहीं रही और नहीं उसके शब्द भण्डार में किसी प्रकार की कमी रही ,गाँव गिरांव से लेकर चौपाल तक के शब्द बखूबी अपनाते रहे । यही उनकी सम्पन्नता बनी । यही उनकी पहचान भी बनी ।कवि सम्मेलनों में दोहा अवश्य सुनाते थे । कविसम्मेलन का संचालन उनसे अधिक बहुत कम ही लोगों ने किया होगा,निष्पक्ष भाव से कार्य निष्पादन करते थे ,शिष्ट शैली उन्हें प्रिय थी ,वे स्वयं शिष्ट थे,उन्हें इलाहाबाद का कुम्भ मेला कितना प्रिय था यह सभी जानते थे ,उनका अमवसा का मेला आज भी प्रसिद्ध है -
ई भक्ती के रंग में रंगल गाँव देखा ,
धरम में करम में सनल गाँव देखा ।
अगल में बगल में सगल गाँव देखा ,
अमवसा नहाये चलल गाँव देखा ।।

उनका मानना था कि सभी के जीवन में प्रेम आता है ,होता है परन्तु उसे समझना जरूरी है किन्तु वर्त्तमान परिवेश का प्रेम कैसा है, इस विषय में कहते हैं -

सुबह -सुबह
पुरइन का पत्ता ,
देख रहा मैं ताल में,
जैसे कोई ढाई आखर ,
बांच रहा रुमाल में ।
समाज को अपनी रचना धर्मिता से सावधान करने में कोई कोर कसरनहीं छोड़ते कहते है सब जगह जाना ठीक है, जिंदगी में कभी कचहरी नहीं जानाचाहिए -
भले जाके जंगल धूनी रमाना ।
मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना ।
कचहरी तो बेवा का तन देखती है ।
कहाँ से खुलेगा बटन देखती है ।
जीवन के अन्तिम क्षणों के लिए तो बस यही कहा जा सकता है कि -
आना जी फिर आना गीत ,
इन्हीं गलियों में ,
तुम पर्व लिए आना,
त्यौहार लिए आना।
मीठे मुँह अच्छे दिन ,
बार-बार आना ,
खिलौना हूँ आग से बचाना ।

उनकी असंख्य रिकॉर्डिंग प्रसार भारती के आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश ,छत्तीस गढ़ ,उत्तराखण्ड आदि राज्यों में सभी केन्द्रों पर हैं आकाशवाणी का इलाहाबाद ,वाराणसी और लखनऊ उनका प्रिय केन्द्र रहा ,उन्होंने फिल्मों के लिए भी गीत लिखे सांच भइल सपना हमार के पांच गीत इनके ही है । हिन्दुस्तानी अकादमी के लिए अंतिम दिनों में अध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे। उनकी स्मृति अहर्निश सेवा की याद दिलाती है ।

Contributed by : Karuna Shankar Dubey, Lucknow, Email : kdubey306@gmail.com

If you want to add/share more information, please use the comment button given below the post or mail information to pbparivar@gmail.com

Akashwani and Doordarshan have a special significance as the grand old National Public Service Broadcasters and both of them have very rich and glorious history. Almost every renowned singer, celebrated dancer and distinguished and eminent writer have been associated with Akashwani, especially in the 1940s-50s and beyond. Many of them were associated with Doordarshan as well. Doordarshan has also contributed to the blossoming of many Film Directors, Artists, and Producers. PB Parivar calls upon each of its members to join hands in building up this data base and saluting our veterans and send such stories at pbparivar@gmail.com.

No comments:

Post a Comment